एकान्त में रहकर भगवान की शरण हो कर दीनभाव से प्रार्थना करे - कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः। यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम॥ गीता२/७॥ इस श्लोक का एकान्त में जाकर बैठकर यह श्लोक पढें। श्लोक